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Home » आध्यात्मिक ज्ञान » जती तथा सती क्या होता है?

जती तथा सती क्या होता है?

भक्त जती तथा सती होना चाहिए 

 ‘‘जति के लक्षण‘‘

  • पुरूष यति (जति) सो जानिये, निज त्रिया तक विचार।
  • माता बहन पुत्री सकल और जग की नार।।

भावार्थ:- यति पुरूष उसको कहते हैं जो अपनी स्त्री के अतिरिक्त अन्य स्त्री में पति-पत्नी वाला भाव न रखें। परस्त्री को आयु अनुसार माता, बहन या बेटी के भाव से जानें।

‘‘सती स्त्री के लक्षण‘‘

  • स्त्री सो जो पतिव्रत धर्म धरै, निज पति सेवत जोय।।
  • अन्य पुरूष सब जगत में पिता भ्रात सुत होय।।
  • अपने पति की आज्ञा में रहै, निज तन मन से लाग।।
  • पिया विपरीत न कछु करै, ता त्रिया को बड़ भाग।।

भावार्थ:- सती स्त्री उसको कहते हैं जो अपने पति से लगाव रखे। अपने पति के अतिरिक्त संसार के अन्य पुरूषों को आयु अनुसार पिता, भाई तथा पुत्र के भाव से देखे यानि बरते। अपने पति की आज्ञा में रहे। मन-तन से सेवा करे, कोई कार्य पति के विपरीत न करे।

इसे भी पढ़ें भक्त परमार्थी होना चाहिए

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