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ताजमहल को बेचने वाले ठग नटवरलाल की कहानी

ताजमहल को बेचने वाले ठग नटवरलाल के बारे जान दंग रह जाएंगे आप

एक ऐसा ठग जिसने ठगी के कई बड़े रिकॉर्ड बनाए कारनामों की बात करे तो उसने कई बार विदेशियों को आगरा का ताज महल बेच दिया था इतना ही नहीं लाल किला इंडिया गेट और संसद भवन तक राष्ट्रपति के फर्जी सिंगनेचर कर बेच दिया था। उसको पुलिस ने कई बार गिरफ्तार भी किया और जेल भी गया लेकिन देश की बड़ी से बड़ी जेल से आसानी से वह फरार होने में कामयाब रहा। एक ऐसा ठग जो आखरी बार पुलिस को चकमा दे भाग गया तब से उसका कोई पता नहीं लगा उसकी मौत भी एक रहस्य बनकर रह गई। 

बात देश के सबसे बड़े ठग नटवरलाल की

भारत के मशहूर ठग नटवरलाल का असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था । इसका जन्म 1912 में बिहार राज्य के सीवान जिले के बंगरा गाँव में हुआ था। नटवरलाल एक प्रसिद्ध भारतीय शख्स था जिसने ठगी करते हुए ताजमहल, लाल किला, राष्ट्रपति भवन और संसद भवन तक को कई बार सरकारी कर्मचारी बनकर बेच दिया था।

नटवरलाल का जन्म सिवान के बांगरा गाँव में एक रईस जमींदार रघुनाथ श्रीवास्तव के घर पर हुआ था ।

मिथिलेश कुमार से नटवर लाल बनने की दो अलग कहानियां हैं। पहली कहानी के मुताबिक बिहार के सीवान जिले के बंगरा गांव का रहनेवाला मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव, धनी जमींदार रघुनाथ प्रसाद का बड़ा बेटा था। मिथिलेश पढ़ने में एक औसत छात्र था। पढ़ाई के बजाय फुटबॉल और शतरंज में उसकी रूचि ज्यादा थी। कहते हैं कि मैट्रिक की परीक्षा में फेल होने पर मिथिलेश को उसके पिता ने बहुत मारा। जिसके बाद वह कलकत्ता भाग गया। उस समय उसकी जेब में सिर्फ पांच रुपए थे। कलकत्ता में मिथिलेश ने बिजली के खंभे के नीचे पढ़ाई की, बाद में सेठ श्री केशवराम जी नाम के एक व्यक्ति ने मिथिलेश को अपने बेटे को पढ़ाने के लिए रख लिया। मिथिलेश ने सेठजी से अपनी स्नातक की पढ़ाई के लिए पैसे उधार मांगे, जिसे सेठजी ने देने से मना कर दिया। सेठजी के मना करने से मिथिलेश इतना चिढ़ गया कि उसने रुई की गांठ खरीदने के नाम पर सेठजी से 4.5 लाख ठग लिए।

दूसरी कहानी ये कहती है कि एक बार मिथिलेश को उसके पड़ोसी सहाय ने बैंक ड्राफ्ट जमा करने के लिए भेजा। वहां जाकर मिथिलेश ने सहाय के हस्ताक्षर को हूबहू कॉपी किया। उस समय मिथिलेश को पहली बार लगा कि वो जालसाजी का काम कर सकता है। उस दिन के बाद से मिथिलेश कुछ दिनों तक अपने पड़ोसी के खाते से पैसे निकालता रहा। जब मिथिलेश के पड़ोसी को इस बात की भनक लगी, तब तक मिथिलेश खाते से 1000 रुपए निकाल चुका था। पता चलने के बाद मिथिलेश कलकत्ता चला गया और वहां जाकर वाणिज्य (कॉमर्स) में स्नातक (ग्रेजुएशन) किया। साथ ही शेयर बाजार में दलाली का काम करने लगा।

उसकी जालसाजी के किस्से..

उसने सैकड़ों लोगों को धोखा दिया और 50 से अधिक नामों का इस्तेमाल किया। वह हमेशा ठगी के लिए शहर बदलता रहता था। लोगों को धोखा देने के लिए उपन्यासों से पढ़कर आइडिया इस्तेमाल करता था। ठगी में नटवर लाल इतना शातिर था कि उसने 3 बार ताजमहल, दो बार लाल किला, एक बार राष्ट्रपति भवन और एक बार संसद भवन तक को बेच दिया था। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के फर्जी हस्ताक्षर करके नटवर लाल ने संसद को बेच दिया था। जिस समय संसद को बेचा था, उस समय सारे सांसद वहीं मौजूद थे। कहते हैं कि नटवर लाल के 52 नाम थे, उन्ही में से एक नाम नटवर लाल था। सरकारी कर्मचारी का भेष धरकर नटवर लाल ने विदेशियों को ये सारे स्मारक बेचे थे। इसकी ठगी पर ‘मिस्टर नटवर लाल’ फिल्म भी बन चुकी है। जिसमें अमिताभ बच्चन ने इसका रोल निभाया है। वह प्रसिद्ध हस्तियों के हस्ताक्षर बनाने में भी माहिर था। यह भी कहा जाता है कि उसने कई बड़े उद्योगपतियों को भी धोखा दिया था, वह एक बड़ी रकम नकद उनसे यह कहकर लेता था कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता है। उसने कई दुकानदारों को लाखों रुपयों का चूना लगाया । दुकानदारों से बड़ी संख्या में सामान लेकर उन्हें नकली चेक और डिमांड ड्राफ्ट द्वारा भुगतान करता था।

दिल्ली का कनॉट प्लेस. सुरेंद्र शर्मा की घड़ी की दुकान थी एक दिन सफेद कमीज और पैंट पहने एक बूढ़ा आदमी घड़ी की दुकान में जाता है और खुद का परिचय तत्कालीन वित्तमंत्री नारायण दत्त तिवारी का पर्सनल स्टाफ डी.एन. तिवारी रूप में देता है और दुकानदार से कहता है कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं, इसलिए उन्होंने पार्टी के सभी वरिष्ठ लोगों को समर्थन के लिए दिल्ली बुलाया है और इस बैठक में शामिल होने वाले सभी लोगों को वो घड़ी भेंट करना चाहते हैं तो मुझे आपकी दुकान से 93 घड़ी चाहिए। दुकानदार को पहले तो इस आदमी की बातों पर शक हुआ लेकिन एक साथ इतनी घड़ियों को बेचने के लालच से खुद को रोक नहीं पाया।

अगले दिन वो बूढ़ा आदमी घड़ी लेने दुकान पहुंचा। दुकानदार को घड़ी पैक करने की बात कह एक स्टाफ को अपने साथ नॉर्थ ब्लॉक (नॉर्थ ब्लॉक वो जगह है, जहां प्रधानमंत्री से लेकर बड़े-बड़े अफसरों का ऑफिस होता है) ले गया. वहां उसने स्टाफ को भुगतान के तौर पर 32,829 रुपए का बैंक ड्राफ्ट दे दिया. दो दिन बाद जब दुाकनदार ने ड्राफ्ट जमा किया तो बैंक वालों ने बताया कि वो ड्राफ्ट फर्जी है। फिर दुकानदार को समझ आया कि वो बूढ़ा आदमी नटवर लाल था और इसके बाद वित्तमंंत्री वीपी सिंह तो कभी वाराणसी के जिला जज का नाम तो कभी यूपी के सीएम के नाम पर नटवर लाल अलग-अलग शहर में दुकानदारों का चूना लगाता रहा।

नटवरलाल को नौ बार गिरफ्तार किया गया था लेकिन हर बार वह जेल से भागने में सफल रहा। उसे जालसाजी के 14 मामलों के लिए दोषी ठहराया गया था और 113 साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उसने मुश्किल से 20 साल जेल में बिताए। आखिरी बार जब उसे 1996 में गिरफ्तार किया गया था तो उस समय उसकी उम्र 84 साल थी। लेकिन वह पुलिस को चकमा देने में फिर से कामयाब रहा।उस समय वह व्हीलचेयर का उपयोग करता था और उसे कानपुर जेल से दिल्ली इलाज के लिए अस्पताल ले जाया जा रहा था।नई दिल्ली रेलवे स्टेशन मौका पाकर वह गायब हो गया। इसके बाद उसे 24 जून 1996 को पुलिस द्वारा अंतिम बार देखा गया था। उस तारीख के बाद उसे फिर कभी नहीं देखा गया।नटवर लाल को अपने किए पर कोई शर्म नहीं थी। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूं। उसका कहना था कि मैंने कभी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। लोगों से बहाने बनाकर पैसे मांगे और लोग पैसे दे गए। इसमें मेरा क्या कसूर है? यही नहीं नटवरलाल के गांव के लोग तो उसे अपना रोबानहुद मानते थे वह कहते थे उसने कोई गलत काम नहीं किया वह सालो पहले गांव में कई गाड़ियों के काफिले के साथ आया था तब से लेकर अब तक उसको पूरा गांव अपना हीरो मानता है। आखिरी बार नटवर लाल बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से नटवर लाल को जानता था, उसे पहचान लिया। नटवर लाल ने भी देख लिया कि उसे पहचान लिया गया है। सिपाही अपने साथियों को लेने थाने के भीतर गया और नटवर लाल गायब था। यह बात अलग है कि पास खड़ी मालगाड़ी के डिब्बे से नटवर लाल के उतारे हुए कपड़े मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी।

नटवरलाल पत्रकारों के भी बहुत प्रिय थे…एक बार पत्रकारों ने उनसे जीवन की किसी अविस्मरणीय घटना के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि जब मैं पटना जेल में था तो मुझे जेल में IPS अधिकारियों के कई क्लास लेने पड़े ठगी के विषय के ऊपर!!

नटवरलाल के वकील द्वारा 2009 में अदालत में यह कहते हुए अर्जी डाली गई कि नटवरलाल की मृत्यु 25 जुलाई 2009 को चुकी है इसलिए उसके खिलाफ लम्बित केस खारिज़ कर दिए जाए । नटवर लाल के छोटे भाई गंगाप्रसाद जो कि गोपालगंज में रहता है का भी कहना था कि नटवरलाल का अन्तिम संस्कार रांची में कर दिया गया है । परन्तु आज तक इसके कोई पुख्ता सबूत या सरकारी दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं इसलिए यह एक रहस्य बनकर रह गया।

नटवरलाल के जीवन में दो पत्नियां एवं एक बेटी थी ।

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