रंग की होली vs राम रंग होली: समाज को कौन सी होली खेलनी चाहिए?
होली का रंग क्या सिर्फ गुलाल तक सीमित है, या फिर इसमें राम के आदर्शों का समावेश भी होना चाहिए?
होली भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे रंगों, उल्लास और भाईचारे के साथ मनाया जाता है। लेकिन वर्तमान समय में होली के रंग दो रूपों में देखे जा सकते हैं— एक, पारंपरिक रंगों से खेली जाने वाली “रंग की होली”, और दूसरी, मूल्यों और संस्कृति से जुड़ी “राम रंग होली”।
क्या है रंग की होली?
रंग की होली पारंपरिक रूप से अबीर-गुलाल, पानी और कभी-कभी पक्के रंगों के साथ मनाई जाती है। यह त्योहार हर्षोल्लास, मस्ती और मौज-मस्ती का प्रतीक है। लेकिन समय के साथ इसमें कुछ नकारात्मक पहलू भी जुड़ गए हैं, जैसे—
- रासायनिक रंगों का प्रयोग: जो त्वचा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- अश्लीलता और अराजकता: कुछ स्थानों पर यह त्योहार अनुशासनहीनता और अनुचित व्यवहार का माध्यम बन जाता है।
- पानी की बर्बादी: जहां पानी की कमी है, वहां इस तरह की होली एक समस्या बन सकती है।
क्या है राम रंग होली?
“राम रंग होली” का अर्थ सिर्फ धार्मिक होली खेलना नहीं है, बल्कि समाज में राम के मूल्यों को अपनाना है। इसका मतलब है—
- सद्भाव और भाईचारा: सभी जाति-धर्म के लोगों को प्रेम और समानता का संदेश देना।
- संस्कारों की होली: बुजुर्गों का सम्मान, स्त्रियों की गरिमा का ध्यान और संयमित व्यवहार रखना।
- प्राकृतिक रंगों का प्रयोग: जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हों।
- सेवा और दान की भावना: जरूरतमंदों को मदद देकर त्योहार को सार्थक बनाना।
समाज को कौन सी होली खेलनी चाहिए?
समाज को ऐसी होली अपनानी चाहिए, जो आनंद और मर्यादा दोनों का समावेश करे। रंगों की होली से खुशी जरूर मिलती है, लेकिन राम रंग होली हमें सामाजिक आदर्शों से भी जोड़ती है। यदि हम राम के रंग में रंगी होली खेलें, तो यह सिर्फ एक उत्सव नहीं रहेगा, बल्कि समाज में शांति, प्रेम और समरसता का संदेश देगा।
आज जरूरत इस बात की है कि हम रंग और राम, दोनों को संतुलित करें। रंगों का त्योहार सिर्फ बाहरी दिखावा न बने, बल्कि इसके माध्यम से हम समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करें। इस होली पर संकल्प लें कि हम ऐसी होली खेलेंगे जो न केवल हमें खुशी दे, बल्कि समाज को भी बेहतर बनाए।
निष्कर्ष:
रंग की होली तब सार्थक होगी, जब उसमें राम रंग भी होगा। केवल बाहरी रंग लगाने से होली पूरी नहीं होती, बल्कि भीतर से प्रेम, सद्भाव और मर्यादा का रंग भी चढ़ना चाहिए। यही सच्ची होली होगी, जो पूरे समाज को एक नए रंग में रंग देगी— राम रंग में, संस्कारों के रंग में!
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