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तुम मुझे इंडिया दो, मैं तुम्हे कब्र दूंगा : संजय पराते

तुम मुझे इंडिया दो, मैं तुम्हे कब्र दूंगा : संजय पराते

हमारे देश में दो दुनिया बसती है। एक का नाम इंडिया है और दूसरे का नाम भारत। इंडिया साधन संपन्न और चकाचक है। यह इंडिया पूरी दुनिया में इंडिया का प्रतिनिधित्व करता है। भारत दाने-दाने को मोहताज है, गंदगी-बदबू से भरा और फटेहाल है। जब भी विदेश से कोई नेता इंडिया आता है, तो इस भारत को ढांकने-छुपाने का हर जतन किया जाता है। फिर भी, यहां-वहां मुंह घुसाकर, इधर-उधर की रिपोर्टों में अपना दयनीय चेहरा दिखा ही देता है। चेहरा भारत का दिखता है, पूरी दुनिया में थू-थू इंडिया की होती है कि देखो इस इंडिया को! अपने भारत को भी संभाल कर नहीं रख पा रहा। अब किसे समझाए कि भाई, यह तो किस्मत का खेल है। कोई इंडिया में रहता है, तो कोई भारत में। यह आज की बात नहीं है, सनातन काल से चल रहा है। हम तो सिर्फ सनातन धर्म का पालन कर रहे हैं। हमारा धर्म वसुधैव कुटुंबकम् की बात करता है। पूरी धरती हमारा परिवार है। तो अब किस-किस का ख्याल रखें। अब क्या पूरे भारत को अपनी इंडिया में जगह दे दें। दे तो रहे हैं 80 करोड़ लोगों को मुफ्त का राशन। कुछ ट्रंपजी को देने के लिए भी बचा रहने दें। वो बेचारा तो पूरे भारत से ज्यादा भूखा है और उसका ध्यान रखना इंडिया की प्राथमिकता है। तभी वसुधैव कुटुंबकम् की भावना का पालन हो सकता है।

कुछ लोग कह रहे हैं कि देश में आर्थिक समानता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि देश की कुल कमाई का 57% से ज्यादा हिस्सा सबसे अमीर 14 करोड़ लोगों के पास चला जाता है और नौकरीपेशा लोगों की आय पिछले 10 सालों से ठहरी हुई है और बचत पिछले 50 साल के सबसे निचले स्तर पर है। अब इसी ठहरी आय को गति देने के लिए तो बजट में आयकर में बंपर छूट दी गई है, ताकि इससे हुई बचत से ठहरी हुई अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। अब कुछ लोग इसमें भी नुक्स निकाल रहे है कि 100 करोड़ लोगों के लिए कुछ नहीं! ब्लूम वेंचर्स की रिपोर्ट में चेहरा घुसा-घुसा कर दिखा रहे है कि उनके पास कुछ भी खरीदने की ताकत नहीं है, बस किसी तरह जिंदा हैं और 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं।

भारत की इस भावना का स्वागत होना चाहिए। यही राष्ट्रभक्ति है, यही राष्ट्रवाद है। राष्ट्रभक्ति का यही तकाजा है कि जिसके पास जो कुछ है, वह ‘इंडिया फर्स्ट’ के लिए न्यौछावर कर दे। भारत के पास मेहनत है, इस मेहनत से वह इंडिया को जिंदा रखें। इंडिया के पास अपार संपत्ति है, इससे वह देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएं। यह याद रखने की बात है कि अर्थव्यवस्था है, तो देश है और देश है, तो अर्थव्यवस्था है। यह देश इंडिया और भारत दोनों से मिलकर बना है और इस देश का विकास दोनों की जिम्मेदारी है। इसीलिए तो मोदीजी ने नारा दिया है — ‘सबका साथ, सबका विकास’ और इस विकास के लिए ‘इंडिया फर्स्ट’।

अब इस देश की अर्थव्यवस्था में इंडिया के योगदान को न भूलें। इस देश में 14 करोड़ लोग हैं, जिनकी प्रति व्यक्ति आय 15 हज़ार डॉलर यानी क़रीब 13 लाख रुपए है। ये विकसित इंडिया है। ये वे लोग हैं, जो देश में खपत यदि 100 रुपए की है, तो 66 रुपए खर्च करते हैं। एक विकासशील इंडिया भी है 30 करोड़ लोगों का। इनकी प्रति व्यक्ति आय 3 हज़ार डॉलर या 2.7 लाख रुपए है। यही लोग हैं, जो देश की कुल खपत का एक तिहाई यानी 100 रूपये में 33 रूपये खर्च करते हैं। यही विकसित इंडिया और विकासशील इंडिया मिलकर ‘शाइनिंग इंडिया’ बनाते हैं। शाइनिंग इंडिया बनाने का सपना तो अटल बिहारी का था, लेकिन वास्तव में इसे पूरा कर रहे हैं हमारे मोदीजी। असल में तब अटल बिहारी बाजपेयी ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसा जुमला नहीं खोज पाए थे, वरना शाइनिंग इंडिया का उनका नारा भी हिट होता। लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद, मोदीजी के आने से सब मुमकिन हुआ। देश अब 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर सरपट दौड़ रहा है।

इस दौड़ में भारत को भी साथ देना होगा। ठीक है, उनकी हालत अफ्रीका जैसी है, वे बाजार में एक रुपया भी खर्च करने की औकात नहीं रखते, तो क्या हुआ? अफ्रीका गरीब है, तो क्या दुनिया को अफ्रीका की जरूरत कम है? नहीं न! ट्रंप के आने के बाद तो अफ्रीका का महत्व और बढ़ गया है। ठीक यही बात हमारे देश पर लागू होती है। क्या हमारे देश को भारत की जरूरत कम है? नहीं न! मोदीजी के आने के बाद तो भारत का महत्व और बढ़ गया है। हमारे मोदीजी तो पूरी ईमानदारी के साथ मनमोहन सिंह के बताए पर अमल कर रहे हैं। बहुत बड़े अर्थशास्त्री थे वे। इतने बड़े कि विश्व बैंक भी उन पर फिदा था। उन्होंने ही हमारे देश के विकास का मंत्र बताया था कि इस देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला हक है। अब जो मोदीजी विश्व बैंक पर फिदा हैं, उनको तो मनमोहन सिंह के इस मंत्र पर चलना ही है। सो, बहुसंख्यक भारत के संसाधनों को अल्पसंख्यक इंडिया के हाथों दिए जा रहे हैं। अल्पसंख्यकों को देने के मामले में मनमोहन सिंह जितने ईमानदार थे, इंडिया को देने के मामले में मोदी उनसे भी ज्यादा ईमानदार है। इसीलिए तो पूरी दुनिया में मोदीजी का डंका बज रहा है। यह तो पूरी दुनिया देख रही है कि ट्रंपजी के दरवज्जे पर कुछ लोगों का बाजा बज रहा है, बड़े बे-आबरू होकर बाहर निकल रहे हैं और मोदीजी डंके की चोट पर ट्रंपजी के घर बुलवाए जा रहे हैं। आखिर हमारे मोदीजी में कुछ बात तो है!

तो बात यही है कि दुनिया के कदम के साथ कदम मिलाकर चलना जानते हैं मोदीजी। मोदी जी और ट्रंप जी की विश्व दृष्टि समान है। ट्रंप जी को इंडिया चाहिए और इंडिया को मोदीजी का भारत। इस भारत को बड़ी खूबसूरती से, बड़े जतन से मोदीजी गढ़ रहे हैं, ताकि दुनिया में इंडिया का डंका बजे। सब जानते है कि पिछले 60 सालों में पूरी दुनिया में भारत का बाजा ही बजा है। अब इंडिया का डंका बजेगा हमारे मोदीजी के नेतृत्व में। पूरी दुनिया में इंडिया चमकेगा और इस शाइनिंग इंडिया के लिए भारत की राष्ट्रभक्ति भी देखेगा। इस राष्ट्रभक्ति में कोई कसर बाकी नहीं रखी जाएगी। जरूरत पड़ने पर हर कब्र को खोदकर मंदिर खोजा जाएगा, खुद अपने हाथ में कुल्हाड़ी लेकर 18 घंटे खुदाई का काम भी करेंगे मोदीजी।

कहते हैं कि रोम जल रहा था, तो नीरो बंसी बजा रहा था। लोग इसे भूल जायेंगे। कहेंगे, जब इंडिया चमक रहा था, तो मोदीजी खुदाई कर रहे थे। मोदीजी का नारा है — तुम मुझे इंडिया दो, मैं तुम्हे कब्र दूंगा। और मोदी है, तो मुमकिन है भारत कब्रगाह में भी तब्दील हो जाएं। इंडिया फर्स्ट के लिए सब कुछ करेंगे मोदीजी।

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