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दिल्ली के अध्यादेश का मामला बड़ी बेंच को भेजा जाएगा?

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस याचिका को खारिज करने की मांग की है 

दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. इस दौरान केजरीवाल सरकार ने दलील दी कि इस मुद्दे को टाला नहीं जा सकता, क्योंकि इससे व्यवस्था पर असर पड़ रहा है. वहीं, केंद्र सरकार ने इस मामले को संसद के मॉनसून सत्र के बाद सुने जाने की अपील की. हालांकि, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले को पांच जजों की बेंच के पास भेजा जा सकता है।

दरअसल, इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण और अधिकार से जुड़े मामले पर फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी. इसके बाद केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई थी, जिसमें फिर से उपराज्यपाल को दिल्ली का ‘बॉस’ बना दिया था।

इसी अध्यादेश को केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस पर आज सुनवाई हुई. केजरीवाल सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें रखीं. सिंघवी ने अदालत से कहा कि इस मामले पर जल्द से जल्द सुनवाई होनी चाहिए, क्योंकि ये दिल्ली पर कहर बरपा रहा है.

वहीं, केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने केजरीवाल सरकार की इस याचिका का विरोध किया. केंद्र ने कहा कि अध्यादेश को चुनौती मनमानी के आधार पर दी गई है.

क्या केंद्र ऐसा कानून बना सकती है?

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बेंच इस मामले को संवैधानिक बेंच के पास भेजना चाहती है. संविधान पीठ विचार करेगी कि क्या संविधान के एंट्री 41 में इस तरह से संशोधन किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि इस पर विचार किया जाएगा कि क्या केंद्र सरकार ऐसा कानून बना सकती है, जिससे दिल्ली सरकार को कानून बनाने से रोका जा सके. जबकि, दिल्ली सरकार को पुलिस, जमीन और सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े कानून बनाने पर रोक है. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि संसद के पास सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार और शक्ति है।

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वहीं, सिंघवी ने इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजने के प्रस्ताव का विरोध किया। अध्यादेश के मामले पर अब गुरुवार को सुनवाई होगी।उसी दिन इस बात पर भी फैसला लिया जाएगा कि मामले को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं।

क्या है मामला?

11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी अधिकार भी उसी का है।

प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण और अधिकार से जुड़े मामले पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, दिल्ली की पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर केंद्र का अधिकार है, लेकिन बाकी सभी मामलों पर चुनी हुई सरकार का ही अधिकार होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया था कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी।

केंद्र का अध्यादेश क्या है?

केंद्र सरकार 19 मई को अध्यादेश लेकर आई थी. इसका नाम ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023’है।

चूंकि, अभी संसद नहीं चल रही है, इसलिए केंद्र सरकार ये अध्यादेश लेकर आई है. नियम के तहत, 6 महीने के अंदर इस अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों में पास कराना होगा, तब जाकर ये स्थायी कानून बनेगा।

अध्यादेश के तहत, अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का हक फिर से उपराज्यपाल को दे दिया गया है।

इसके तहत, दिल्ली में सेवा दे रहे ‘दानिक्स’ कैडर के ग्रुप-A अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए एक अथॉरिटी का गठन किया जाएगा. दानिक्स यानी दिल्ली, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड दीव, दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विसेस।

इस अथॉरिटी में तीन सदस्य- दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के गृह प्रधान सचिव होंगे. इस अथॉरिटी के अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे।

अथॉरिटी को सभी ग्रुप-A और दानिक्स के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियुक्ति से जुड़े फैसले लेने का अधिकार होगा, लेकिन इस पर आखिरी मुहर उपराज्यपाल की होगी।

अगर उपराज्यपाल अथॉरिटी के फैसले से सहमत नहीं होते हैं तो वो इसे बदलाव के लिए लौटा भी सकते हैं. फिर भी मतभेद रहता है तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही होगा।

7k Network

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