प्रियंका गांधी आज ग्वालियर दौरे पर हैं। दरअसल, ग्वालियर संभाग में कुल पांच जिले आते हैं जिनमें कुल 21 विधानसभा सीटें पड़ती हैं। पिछली बार कांग्रेस कोई यहां 16 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन इस बार उसके साथ सिंधिया नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस इस इलाके में मिली सफलता को फिर से दोहराना चाहती है, इस लिहाज से प्रियंका का दौरा अहम है।
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी आज ग्वालियर जिले के दौरे पर हैं। प्रियंका गांधी का 40 दिनों में यह मध्यप्रदेश का दूसरा दौरा है। इससे पहले वह 12 जून को जबलपुर गईं थीं। वहीं उनके ग्वालियर दौरे की बात करें तो वो यहां चुनावी अभियान का आगाज करेंगी। दरअसल, यह इलाका केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है। इसके साथ ही यह इस समय राजनीति का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
राज्य में साल के अंत में चुनाव है। ऐसे में प्रियंका के ग्वालियर क्षेत्र के दौरे के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। इस बीच जानना जरूरी है कि ग्वालियर का सियासी समीकरण क्या है? कांग्रेस इस क्षेत्र पर इतना फोकस क्यों कर रही है? 2018 में इस इलाके में क्या नतीजे रहे थे? प्रियंका के ग्वालियर दौरे के मायने क्या? रैली से कांग्रेस को क्या फायदा? आइये जानते हैं…
पहले जानते हैं प्रियंका के ग्वालियर दौरे के बारे में
प्रियंका गांधी चुनावी अभियान की शुरुआत करने के लिए आज ग्वालियर दौरे पर हैं। सिंधिया के गढ़ ग्वालियर में कदम रखने के बाद प्रियंका गांधी ने सबसे पहले वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल पर पहुंचकर पुष्पांजलि अर्पित की। उसके बाद यहां मेला ग्राउंड में कांग्रेस नेता की रैली है।
ग्वालियर का सियासी समीकरण
ग्वालियर संभाग में कुल पांच जिले आते हैं जिनमें ग्वालियर, गुना, शिवपुरी, अशोकनगर और दतिया जिले आते हैं। इन पांच जिलों में कुल 21 विधानसभा सीटें पड़ती हैं। दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर भी उन क्षेत्रों में थे, जिसने कांग्रेस को अधिक सीटें दिलाकर राज्य में वर्षों बाद पार्टी की सरकार बनाने में मदद की थी। पिछले चुनाव में 114 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को यहां से 16 सीटें मिली थीं। वहीं भाजपा को इस इलाके में महज पांच सीटें ही मिल सकी थीं। 109 सीटें जीतने वाली भाजपा को ग्वालियर क्षेत्र में नुकसान हुआ था।
चुनाव के बाद कांग्रेस से सिंधिया की बगावत
दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के करीब 15 महीने बाद मार्च 2020 को मध्य प्रदेश के सियासी ड्रामा हो गया। 22 सिंधिया समर्थक विधायकों ने पार्टी से बगावत कर ली। इस बीच 10 मार्च 2020 को, कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आए। इस मुलाकात के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अगले दिन यानी 11 मार्च को सिंधिया ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।
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ग्वालियर क्षेत्र के नौ कांग्रेस विधायक भी साथ लाए
विधायकों के लगातार इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने यहीं से अपनी हार मान ली और 20 मार्च को दोपहर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। अगले दिन 21 मार्च को, दिल्ली में जे पी नड्डा की उपस्थिति में, विधायकी से इस्तीफा दे चुके सभी 22 बागी भाजपा में शामिल हो गए। वहीं ग्वालियर संभाग क्षेत्र से भी नौ विधायक भाजपा में शामिल हुए। इनमें रक्षा संतराम सरोनिया (भांडेर सीट, दतिया) जयपाल सिंह ‘जज्जी’ (अशोक नगर सीट), महेंद्र सिंह सिसोदिया (बमोरी सीट गुना), इमरती देवी (डबरा सीट, ग्वालियर) प्रद्युम्न सिंह तोमर (ग्वालियर सीट), जसमंत जाटव (करेरा सीट, शिवपुरी), मुन्नालाल गोयल (ग्वालियर पूर्व सीट), ब्रजेंद्र सिंह यादव (मुंगावली सीट, अशोकनगर) और सुरेश धाकड़ (पोहारी सीट, शिवपुरी)।
बागियों की सीट पर हुए उपचुनाव में क्या हुआ?
सरकार गिरने के बाद भी कांग्रेस में इस्तीफे का दौर नहीं थमा। 23 जुलाई 2020 को पार्टी के अन्य तीन विधायकों ने कांग्रेस को अलविदा कह भाजपा का दामन थाम लिया। इसके अलावा, तीन सीटें (जौरा, आगर और ब्यावरा) अपने संबंधित मौजूदा विधायकों के निधन के कारण खाली हो गईं। तीन नवंबर 2020 को सभी 28 खाली सीटों को भरने के लिए उपचुनाव कराया गया। इस उपचुनाव में 28 में से भाजपा को 19 और कांग्रेस को नौ सीटें मिलीं। ग्वालियर संभाग क्षेत्र में इन नतीजों की बात करें तो कांग्रेस को बड़ा झटका लगा और उसके विधायकों की संख्या 16 से घटकर 10 रह गई। दूसरी ओर सिंधिया गुट के साथ आने से भाजपा को फायदा हुआ और उसके विधायक छह से बढ़कर 11 हो गए।
प्रियंका के ग्वालियर दौरे के मायने क्या?
दरअसल, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से गिर गई थी। प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेता उस पल को भूले नहीं हैं। इसलिए आगामी चुनाव में कांग्रेस ने पूरी तैयारी सिंधिया को उनके घर में मात देने की की है। कांग्रेस सीधे-सीधे सिंधिया परिवार को टारगेट करने में जुटी है। वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि स्थल पर तमाम ऐसे पोस्टर लगाए गए हैं, जिसमें सिंधिया परिवार को टारगेट किया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस इस इलाके में मिली सफलता को फिर से दोहराना चाहती है, लेकिन उसके सामने इस बार कई नई चुनौतियां दिखाई दे रही हैं। इन्हीं से निपटने के लिए पार्टी ने अभी से प्रियंका गांधी को मैदान में उतार दिया है
प्रियंका की रैली से कांग्रेस को क्या फायदा?
कांग्रेस को इस चुनाव में ग्वालियर और चंबल अंचल की 34 सीटों से काफी उम्मीद है। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को इस इलाके में अच्छी सफलता मिली थी। कांग्रेस की कोशिश है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बिना फिर से उसी प्रदर्शन को दोहराएं। इस दिशा में पहली सफलता कांग्रेस को निकाय चुनाव में मिल गई है। ग्वालियर-मुरैना में वह महापौर का चुनाव जीत चुकी है। अब उस इलाके के वोटरों को साध कर विधानसभा चुनाव जीतने की तैयारी कर रही है। यहां से किसानों के लिए भी बड़ी घोषणा की जा सकती है, क्योंकि करीब 5000 ट्रैक्टरों में किसान सभा में शामिल होने आए हैं। इसके साथ ही पार्टी को उम्मीद है कि प्रियंका के आने के बाद उस क्षेत्र के कार्यकर्ताओं में नया जोश भरेगा।