बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने 27 वर्षीय युवक किशोर लांडकर द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में जानबूझकर धार्मिक भावना या आस्था को ठेस पहुंचाने या अपमानित करने के लिए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक धार्मिक समूह के खिलाफ कथित तौर पर नफरत फैलाने वाली सामग्री पोस्ट करने के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार करते हुए कहा है कि किसी को अपने व्हाट्सएप स्टेटस के माध्यम से दूसरों को कुछ बताते समय जिम्मेदारी की भावना के साथ व्यवहार करना चाहिए। जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मिकी एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने 12 जुलाई को अपने आदेश में कहा कि आजकल व्हाट्सएप स्टेटस का उद्देश्य अपने संपर्क में रहने वालों को कुछ बताना है। पीठ ने इस बात पर ध्यान दिया कि लोग अक्सर अपने संपर्क में रहने वालों का व्हाट्सएप स्टेटस चेक करते रहते हैं।
पीठ ने 27 वर्षीय युवक किशोर लांडकर द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में जानबूझकर धार्मिक भावना या आस्था को ठेस पहुंचाने या अपमानित करने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराधों के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी।
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हाईकोर्ट ने कहा, व्हाट्सएप स्टेटस आप जो कर रहे हैं, सोच रहे हैं या जो कुछ आपने देखा है उसकी तस्वीर या वीडियो हो सकता है, जो 24 घंटे के बाद गायब हो जाता है। व्हाट्सएप स्टेटस का उद्देश्य ही किसी व्यक्ति के कॉन्टैक्ट्स तक कुछ बात पहुंचाना है। यह और कुछ नहीं बल्कि परिचित व्यक्तियों के साथ संचार का एक तरीका है। अदालत ने कहा, किसी को भी दूसरों से कोई बात कहते समय जिम्मेदारी की भावना के साथ व्यवहार करना चाहिए।
शिकायतकर्ता का मामला यह है कि मार्च, 2023 में आरोपी ने अपना व्हाट्सएप स्टेटस अपलोड किया जिसमें उसने एक प्रश्न लिखा और दर्शकों से चौंकाने वाले परिणाम प्राप्त करने के लिए गूगल पर इसे सर्च करने के लिए कहा। जब शिकायतकर्ता ने सवाल को गूगल पर सर्च किया तो उसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली आपत्तिजनक सामग्री नजर आई।
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आरोपी ने दावा किया कि उसका किसी भी धार्मिक समूह की भावनाओं को ठेस पहुंचाने या जानबूझकर स्टेटस प्रदर्शित करने का इरादा नहीं था और चूंकि व्हाट्सएप स्टेटस केवल वे ही देख सकते हैं जिन्होंने स्टेटस डालने वाले व्यक्ति का नंबर सेव किया है, इसलिए यह तय है कि उसका नफरत फैलाने का कोई इरादा नहीं था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी द्वारा अपलोड किए गए व्हाट्सएप स्टेटस ने अन्य लोगों को गूगल पर खोज करने और यह पढ़ने के लिए उकसाया कि आरोपी व्यक्ति उनसे क्या चाहता है।
अदालत ने कहा कि एफआईआर प्रथम दृष्टया में आरोपी व्यक्ति के एक विशेष समूह की भावना का अपमान करने के जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे का खुलासा करती है और मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा, आवेदक यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता कि व्हाट्सएप स्टेटस सीमित प्रचलन में है। आवेदक के लिए ऐसे स्टेटस प्रदर्शित करने का कोई औचित्य नहीं है।