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करवा चौथ व्रत में क्या करना चाहिए क्या नही करना चाहिए आइए जानते 

चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीम सिंह चौहान ने की थी

यह भारत के जम्मू हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के उपरांत संपूर्ण होता है शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है करवा चौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी के जैसे दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव अधिकतर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।

भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीम सिंह चौहान ने की थी पूजन उस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चन्द्रमा का पूजन करें पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त वर्णित सभी देवों को स्थापित करें।

नैवेद्य शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य हेतु बनाएँ करवा काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से बनाये गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे जिसकी संख्या 10 अथवा 11 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं। हिंदू मान्यताओं में महावर यानी आलता को सोलह श्रृंगार में से एक कहा गया है करवा चौथ के दिन स्त्रियां इसे विशेष तौर पर पैरों में लगाती हैं बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव पार्वती स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।

पूजन हेतु निम्न मंत्र बोलें 

ॐ शिवायै नमः से पार्वती का ॐ नमः शिवाय’ से शिव का ॐ षण्मुखाय नमः से स्वामी कार्तिकेय का ॐ गणेशाय नमः से गणेश का तथा ॐ सोमाय नमः से चंद्रमा का पूजन करें करवा में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।

सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को भोजन कराएँ पति की माता (अर्थात अपनी सासू जी) को उपरोक्त रूप से अर्पित एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें

आधुनिक काल में करवा चौथ को पति दिवस का भी नाम दिया गया है तथा उस रूप में भी उसे मनाया जाता है।

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