हर वर्ष प्राइवेट स्कूलों द्वारा पाठ्यक्रम बदले जाने पर रोक लगाए जाने की है जरूरत
उत्तर प्रदेश कौशांबी जिले में कई प्राइवेट स्कूलों ने मनमानी करते हुए इस बार भी अपने पाठ्यक्रम में फेरबदल कर दिया है जिसके कारण अभिभावक परेशान हैं। कमीशन की नियत से कुछ विषयों की किताबें बदल दी गई है, बाकी पुरानी ही रखी गई है। यदि पुराना पाठ्यक्रम होता तो मध्यम वर्ग के बच्चे पास पड़ोस के बच्चों से किताबें लेकर अपना काम चला सकते थे लेकिन अब बच्चे और उनके अभिभावक दोनों ही नया कोर्स खरीदने के संकट से जूझ रहे हैं। हर वर्ष प्राइवेट स्कूलों द्वारा पाठ्यक्रम बदले जाने पर रोक लगाए जाने की जरूरत है। प्रत्येक वर्ष के शिक्षण सत्र में अलग-अलग पाठ्यक्रम से शिक्षा दिए जाने से देश के बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है।
गौरतलब है कि 4 वर्ष पहले शासन ने प्राइवेट स्कूलों के लिए गाइडलाइन जारी की थी। उसमें यह कहा गया था कि निजी स्कूल अपने पाठ्यक्रम में कोई भी परिवर्तन नहीं करेंगे। गत वर्ष के पाठ्यक्रम के आधार पर ही शिक्षण कार्य संचालित कराएंगे लेकिन यह आदेश हवा हवाई साबित हो गया है। अधिकतर प्राइवेट स्कूलों ने हाई कोर्ट के निर्देश के बाद भी कोरोना काल के प्रारंभिक तीन महीने की फीस नही माफ की थी। निजी शिक्षण संस्थानों में कानून और अदालत के आदेश का पालन 4 वर्ष बाद भी नहीं हो सका है जिससे शिक्षा विभाग के अधिकारियों की उदासीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है। शासन की गाइडलाइन को शिक्षण संस्थान के जिम्मेदार नहीं मानते हैं। नए शैक्षिक सत्र में नर्सरी कक्षा से लेकर 12 वीं तक किताबों का पुराना कोर्स नहीं लागू किया गया है। नर्सरी से लेकर इंटर तक प्रत्येक कक्षा में विषयों की किताबें बदल दी गई है। इसका मकसद सिर्फ यह है कि अभिभावकों को महंगे दाम चुकाकर अपने बच्चों का नया कोर्स खरीदना पड़े। हर साल की तरह किताबों और ड्रेस पर बड़ा कमीशन भी मिल जाए।
पुस्तक भंडार नहीं देते ठीक से जानकारी स्कूलों द्वारा पाठयक्रम में बदलाव करने से अभिभावक परेशान हो जाते हैं। यदि अभिभावक किसी आस पड़ोस के बच्चें से पुरानी किताबें ले आते हैं, तो उन्हें पता भी नहीं चलता है कि स्कूलों में कौन सी किताबें बदली गई है। स्टेशनरी वाले भी दुकान न खोलकर डोर टू डोर डिलिवरी कर रहे हैं। अगर अभिभावक पुस्तक विक्रेताओं और विद्यालयों से कौन सी किताब बदली और कौन सी नहीं, का सवाल पूछते हैं, तो उन्हें ठीक ढंग से जानकारी भी नहीं देते क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे नुकसान हो जाएगा।
प्रकाशक और दुकानदार के गठजोड़ से परेशान हो रहे अभिभावक कौशांबी जिले में नए सत्र में तमाम प्रशासनिक आदेश के बावजूद अभिभावकों को स्टेशनरी की दुकानों से पूरा नया कोर्स की किताबें लेनी पड़ रही है। इसका कारण सिर्फ एक है वह यह है हर साल की तरह शिक्षा की आड़ में स्टेशनरी, प्रकाशन वाली कंपनियां और स्कूल प्रबंधन के बीच कमीशन का गठजोड़ अभिभावकों का कहना है न तो स्कूलों की ओर तीन महीने की फीस में छूट दी गई और ना ही किसी स्कूल प्रबंधन ने अन्य मदद की। ऊपर से कोर्स में बदलाव करके उनकी मुसीबत बढ़ा देते हैं। ज्यादातर अभिभावक महंगाई की मार से परेशान हैं।
आर्थिक संकट में अपने बच्चों के लिए इतना महंगा नया कोर्स कैसे खरीदें।प्राइवेट स्कूल संचालकों को अभिभावकों की परेशानी को समझाना चाहिए। देश की आर्थिक मंदी ने सबकी कमर तोड़ दी है, ऐसे में उन्हें बच्चों के पाठ्यक्रम में बदलाव नहीं करना चाहिए था। अगर ऐसा नहीं होता तो मध्यम वर्ग परिवार के बच्चे पुरानी किताबों से काम चला सकते थे।
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