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राखी बांधने की परम्परा की शुरूआत कैसे हुई

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हजारों साल राखी बांधने का प्रचलन शुरू हुआ था

सबसे पहली राखी या रक्षासूत्र राजा बलि को बांधा गया था उन्हें मां लक्ष्मी ने रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया था।

राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी भगवान ने दो पग में ही पूरी धरती नाप डाली और फिर तीसरा पग देने के लिए तब राजा बलि से कहा इस पर राजा बलि समझ गया कि वामन रूप में दिख रहा यह भिखारी कोई साधारण भिखारी नहीं है तीसरे पग के रूप में राजा बलि ने अपना सिर भगवान विष्णु के आगे झुका दिया इससे भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ती से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने को कहा तो राजा बलि ने मांगा कि भगवान स्वयं उसके दरवाजे पर रात दिन खड़े रहें।

ऐसे होने के बाद भगवान विष्णु राजा बलि के पहरेदार बन गए कहा जाता है कि काफी दिन तक भगवान स्वर्गलोक वापस नहीं पहुंची तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधा और अपना भाई बनाया मां लक्ष्मी ने राजा बलि से उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। तब से अभी तक बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं और इसके बदले भाई से रक्षा का बचन लेती हैं। इसी कहानी से जुड़ी कुछ और भी कहानियां हैं जिनमें राखी बांधने की बात कही जाती है।

यही कारण है कि रक्षाबंधन पर या रक्षासूत्र बांधते वक्त जो मंत्र पढ़ा जाता है उसमें राजा बलि को रक्षा बाधंने को याद दिलाया जाता है- मंत्र येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।

जिन लोगों की बहन नहीं होती वे चचेरी बहन या किसी पड़ोस की लड़की को अपनी बहन मानकर राखी बंधवाते हैं इसके बदले में लोग राखी बांधने वाली बहन को कुछ उपहार भी देते हैं। इसी प्रकार जिन बहनों के अपना भाई नहीं होता वह किसी रिश्ते के भाई को अपना भाई मानकर उसे राखी बांधती हैं।

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